वास्तु में कौनसी जगह क्या है ! जानिए
ईष्ट ओर अग्नि कोण के बीच का स्थान दूध मंथन का जॉन है,यानी सात्विक स्थान। साउथ साउथ इष्ट घी रखने का स्थान है ,ये भी सात्विक स्थान है,। इन दोनों के बीच में किचन बताई गई हैं ये भी सात्विक स्थान है।यानी ईष्ट साउथ ईष्ट से लेकर साउथ साउथ इष्ट तक पवित्र स्थान है । यहां कूड़ा टॉयलेट बाथरूम नहीं होना चाहिए। साउथ वेस्ट में पितरो का स्थान है पितर पवित्र आत्मा है यहां भी सात्विक स्थान है।
, वेस्ट साउथ वेस्ट पढ़ने का स्थान है विधा का जॉन, ये भी पवित्र स्थान है ।
, वायव्य (नॉर्थ वेस्ट)अनाज रखने का स्थान है ये भी सात्विक स्थान है।अनाज रखेंगे वहां थोड़ी ना गंदगी रखेंगे ।
ईशान(N E)भगति का स्थान है यहां तो बिल्कुल भी गंदगी नहीं होनी चाहिए ।
उत्तर: कुबेर का स्थान है, धन रखने का स्थान यहां भी गंदगी ठीक नहीं है।
नॉर्थ वेस्ट नॉर्थ: रति गृह मनोरंजन का स्थान है अट्रैक्शन का स्थान है ।
नॉर्थ नॉर्थ ईष्ट ये इम्युनिटी का जॉन है स्वास्थ्य का जॉन है यहां गंदगी का मतलब घर में बीमारियों को निमंत्रण देना।
ईष्ट नॉर्थ ईष्ट में सभी वस्तुओं का स्थान है।
वेस्ट में भोजन कक्ष का स्थान है।
नॉर्थ वेस्ट नॉर्थ रोने का स्थान है, दक्षिण यम का स्थान है।ओर साउथ साउथ वेस्ट पखाने का स्थान है यानी विसर्जन का।
अब बहुत से ज्ञानी लोग बोलते हैं कि नॉर्थ वेस्ट में टॉयलेट बना सकते हैं। ईष्ट साउथ इष्ट में टॉयलेट बना सकते हैं।
अब सवाल ये उठता है किस आधार पर बोल रहे है इन स्थान पर टॉयलेट के लिए ।
ओर जो ये बाते मेने लिखी है ये मेने मन से नहीं लिखी है वास्तु ग्रंथ में लिखा हुआ है।
आइए जानते है आधुनिक वास्तु के बारे में।
वास्तु शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों जैसे मयमतम् या विश्वकर्मा प्रकाश के आधार पर बहुत ही सटीक जानकारी साझा कर रही हु।
जब ग्रंथों में हर दिशा का एक विशेष "देवता" या "कार्य" निर्धारित है, तो आधुनिक वास्तुकार (Vastu Experts) कुछ सात्विक मानी जाने वाली दिशाओं में टॉयलेट की सलाह क्यों देते हैं।
इसके पीछे मुख्य रूप से दो तर्क दिए जाते हैं:
1. 'डिस्पोजल' (Disposal) का सिद्धांत
आधुनिक वास्तु विज्ञान में 16 दिशाओं का विश्लेषण किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे शरीर को पोषण की जरूरत है, वैसे ही विसर्जन (Excretion) की भी जरूरत है।
East-South-East (ESE): इसे 'मंथन' (Churning) का क्षेत्र माना जाता है। अत्यधिक मंथन से चिंता (Anxiety) पैदा होती है। विशेषज्ञों का तर्क है कि यहाँ टॉयलेट होने से व्यर्थ की चिंताएं "फ्लश आउट" हो जाती हैं।
South-South-West (SSW): इसे 'विसर्जन' (Depletion/Disposal) का क्षेत्र माना जाता है। शास्त्रों में भी इसे कुछ हद तक त्याग का स्थान माना गया है, इसलिए यहाँ टॉयलेट को सबसे उपयुक्त माना जाता है।
West-North-West (WNW): इसे 'रोदन' या अवसाद (Depression/Detoxification) का क्षेत्र माना गया है। यहाँ टॉयलेट बनाने का तर्क यह है कि यह मानसिक ब्लॉक और दुख को विसर्जित करने में मदद करता है।
2. जगह की कमी और व्यावहारिक बदलाव (Practical Adaptability)
प्राचीन काल में शौचालय घर की मुख्य सीमा से बाहर होते थे। आज के फ्लैट कल्चर में हमें घर के अंदर ही टॉयलेट बनाना पड़ता है।
जब 16 दिशाओं में से 'ईशान' (NE), 'उत्तर' (N), 'पूर्व' (E) और 'दक्षिण-पश्चिम' (SW) जैसे मुख्य केंद्रों को बचाना अनिवार्य होता है, तो विशेषज्ञ उन "मध्यवर्ती" (Sub-zones) दिशाओं को चुनते हैं जिनका स्वभाव 'छोड़ने' या 'खर्च' करने से जुड़ा है।
मेरा तर्क और ग्रंथों की सत्यता
मेरी बात पूरी तरह सही है कि प्राचीन ग्रंथों में इन स्थानों को पवित्र माना गया है।
ESE में टॉयलेट: यदि यहाँ टॉयलेट बनता है, तो घर के सदस्यों की निर्णय शक्ति (Decision making) प्रभावित हो सकती है क्योंकि यह सात्विक मंथन का स्थान है।
WNW में टॉयलेट: यहाँ टॉयलेट होने से घर के लोगों का उत्साह खत्म हो सकता है।
निष्कर्ष:
जो लोग इन स्थानों पर टॉयलेट बताते हैं, वे ("Function of the Zone" )उस दिशा का कार्य के आधार पर बोलते हैं, न कि ("Deity of the Zone" )उस दिशा के देवता के आधार पर।
यदि आप शुद्ध शास्त्रीय वास्तु को मानते हैं, तो दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम (SSW) के अलावा कहीं भी टॉयलेट बनाना वास्तु सम्मत नहीं है। अन्य जगहों पर टॉयलेट केवल एक "समझौता" (Compromise) है जिसे आधुनिक वास्तुकार कुछ 'रेमेडी' (जैसे स्ट्रिप्स या रंग) के जरिए ठीक करने का दावा करते हैं। ये एक भरम है, ओर कुछ नहीं।
आप अपनी जानकारी के लिए Vastu Shastra Guide जैसे प्रामाणिक स्रोतों का संदर्भ ले सकते हैं या प्राचीन पुस्तक 'मनुष्यालय चंद्रिका' का अध्ययन कर सकते हैं जो स्थान चयन पर विस्तृत प्रकाश डालती है। वास्तु ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश भी उत्तम जानकारी देता है। आप इसे भी पढ़ सकते हैं।
जय सिया राम 🙏
एस्ट्रोलॉजर & वास्तु एक्सपर्ट मूर्ति देवी
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