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कगार पर खड़ी भारत की अमूल्य धरोहर अरावली पर्वतमाला

जगदीश भील, जिलाध्यक्ष, सादड़ी रणकपुर पाली


ब्यूरो रिपोर्ट देसूरी से संवाददाता मोहम्मद अजीज शेख देसूरी/सादड़ी पाली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली पर्वतमाला आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। लगभग 670 से 800 किलोमीटर लंबी यह पर्वतमाला दिल्ली से गुजरात के अहमदाबाद तक फैली हुई है, जो राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के बड़े हिस्से को जीवन देती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते इसके संरक्षण के ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो इसके दुष्परिणाम पूरे उत्तर-पश्चिम भारत को झेलने पड़ सकते हैं।

 भूगर्भिक दृष्टि से अमूल्य धरोहर 
अरावली पर्वतमाला की उत्पत्ति प्री-कैम्ब्रियन युग में मानी जाती है, जो लगभग 350 से 570 करोड़ वर्ष पूर्व की है। यह हिमालय से भी अधिक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है। इसकी संरचना क्वार्ट्ज, ग्रेनाइट, ग्नीस और शिस्ट जैसी अत्यंत पुरानी चट्टानों से बनी है। भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार भीलवाड़ा ग्नीसिक कॉम्प्लेक्स, अरावली ओरोजेनी और दिल्ली ओरोजेनी जैसे टेक्टोनिक चरणों ने इसके निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।

प्राकृतिक और भौगोलिक महत्व अरावली का सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर (माउंट आबू) 1,722 मीटर ऊँचा है। यह पर्वतमाला राजस्थान को दो भागों में विभाजित करती है—एक ओर पश्चिमी शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र और दूसरी ओर अपेक्षाकृत उपजाऊ पूर्वी क्षेत्र। बनास, लूनी और साबरमती जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम भी अरावली से ही होता है, जो जल संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अरावली पर्वतमाला जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है। यहाँ सूखे पर्णपाती वन, औषधीय पौधे तथा अनेक दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। तेंदुआ, लकड़बग्घा (हाइना), जंगली सुअर सहित कई वन्य जीवों का यह प्राकृतिक आवास है। सरिस्का और रणथंभौर जैसे प्रसिद्ध वन क्षेत्र भी इसी पर्वतमाला से जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही “ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया” परियोजना के तहत अरावली क्षेत्र में हरित पट्टी विकसित कर मरुस्थलीकरण रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।

इतिहास और संस्कृति से गहरा नाता
अरावली पर्वतमाला प्राचीन व्यापार मार्गों, ऐतिहासिक किलों और धार्मिक स्थलों की साक्षी रही है। दिल्ली रिज, जो अरावली का ही हिस्सा है, आज भी राष्ट्रीय राजधानी के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में अहम योगदान दे रही है।

वर्तमान में अरावली के सामने सबसे बड़ा खतरा अवैध खनन, अंधाधुंध वन कटाई और जलवायु परिवर्तन है। संगमरमर और अन्य खनिजों के लिए हो रहा अत्यधिक खनन इसकी भू-संरचना को कमजोर कर रहा है। वनों की कटाई से भूमि क्षरण बढ़ रहा है और जल स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि यह सिलसिला जारी रहा, तो आसपास के छोटे-बड़े बांध समाप्त हो सकते हैं, तापमान में वृद्धि होगी और यह क्षेत्र धीरे-धीरे मरुस्थल में तब्दील हो जाएगा। इससे मानव जीवन के साथ-साथ वन्य जीवों का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए “अरावली पर्वतमाला बचाओ, जीवन बचाओ” अभियान के तहत जन-जागरूकता बढ़ाने की मांग तेज हो गई है।
अभियान के जिलाध्यक्ष जगदीश भील (सादड़ी–रणकपुर) ने कहा कि अरावली केवल पहाड़ नहीं, बल्कि राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों की जीवनरेखा है। इसके संरक्षण के लिए सरकार, प्रशासन और आमजन को मिलकर ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे।
अरावली पर्वतमाला का संरक्षण केवल पर्यावरण की रक्षा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने का प्रश्न है। अब समय आ गया है कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाते हुए इस अमूल्य धरोहर को बचाया जाए।

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